शनिवार, 11 मई 2013

मैं, सरकार और गुडें


यादव होने के नाते एक बन्धु ने कहा कि आपकी सरकार में तो खुली गुड्डागर्दी जारी हैं। बस हम लोग इसी चीज से मुलायम और सपा के आने से डर रहे थें, कि खुले आम गुन्डागर्दी का माहौल बन जाएगा इसी का ड़र था, लीजिए जो ड़र था अब सच हो गया हैं। मैं उनसे और उनकी बात से पूरी तरह अक्षरश: सहमत हूँ। विरोध का विकल्प था भी नहीं। पर इन बातो को सोचते सोचते मेरे मन में सिर्फ एक ही सवाल कौध रहा था, कि क्या सच में इस व्यवस्था विकल्प खोजा सकता हैं और अगर है तो क्या?  विकल्प बनाएगा कौन? किससे उम्मीद की जा सकती हैं। ये ऐसे सवाल हैं जिनका जबाव हम आप आसानी से नहीं खोज सकते हैं क्योंकि इन सब सवालों का केवल एक ही जवाब हैं आपकी अपनी नैतिकता जो की ना जाने हम औऱ आप कब की जला कर ताप चुके हैं। तो ऐसी स्थितियों के लिए बचाव लाए भी तो लाए कहाँ सें। आज कोई ज़िया उल हक़ मारा गया हैं कल कोई और मारा जाएगां , पर मारा जरूर जाएगा।
आप सोच रहे होगें कि मैं अति निराशावादी हूँ पर मेरे होने की बडी वजह हैं, जिनके जवाब हम आप दे भी नही सकते। जब विरोध और बदलाव का जब भी मौका आता हैं तो हम और आप जाति वादी से लेकर ना जाने कौन कौन वादी हो जाते हैं, और बदलाव करने से झिझकते हैं। जिस तालाब औऱ जिस भइया की बात हम आप कर रहे हैं वो किसी क्षेत्र में किसी धर्म और जाति के मसीहा होते हैं और जब भी इन्हे बदलने की बारी आती हैं तो हम आप अपने अपने क्षेत्र के मसीहा के रूप में जिंदा रख कर इन्हे जितवाते हैं। बस चेहरे बदल जाते हैं हम कुछ उखाड़ नही पाते हैं। कभी राज ठाकरें, औवेसी, तोगडिया, मोदी, तो कभी मुखिया के रूप में सामने आते हैं, जिनका आप कुछ नही कर सकते और ना ही आपका बना बनाया तंत्र। क्योंकि इस तंत्र के मुखियाँ तो हम आप ने इन्ही को चुन रखा हैं तो ऐसे में ये अपने ही खिलाफ कार्यवाही करवा ले ऐसा कैसे हो सकता हैं, मेरी समझ से बाहर हैं। और जब हम इन्हे बाहर कर सकते हैं तो हम इन्हें ही मसीहा मान कर चुन आते हैं क्योंकि सत्ता और ताकत इन्ही के पास हैं और हम भी इन्ही में अपना हित देख कर खुद को ताकतवर बनाने के लिए इन्ही का चुनान करते रहते हैं। अगर ऐसा ना होता तो सत्ता के केन्द्र में इतने अपराधी कहा से आ गएं हैं। किसी की इतनी हैसियत नही हैं कि वो लोकप्रिय वोट के आधार पर अपने आप को जितवा सके। तो ऐसें में मेरा खुद का मानना हैं कि स्वहित के आगे कोई और हित जिंदा ही कहा रहा हैं। इतिहास की पंरपरा को आज की राजनैतिक पार्टिया अच्छे से भुनाती आ रही हैं. औऱ आज आप और हम सिर्फ अपने गुडें वाली पार्टी का इंतजार कर रहे होते हैं ताकि अपने अपने स्वहित पूरे हो सके. भाजपा .आए तो गुंडें..बसपा आए तो गुडें..सपा आई तो गुडडे तो हम औऱ आप बस अपनी अपनी गुडों वाली पार्टी का इंतजार करते हैं और ये पार्टिया हमारे पंसदीदा गुडें को ढूढ कर हमारे क्षेत्र से चुनाव का टिकट देती हैं ताकि आप अपनी गुडों वाली सरकार को आसीनी से चुन सकें। और हम चुनते भी हैं ना चुनते तो आते कहाँ से हर पार्टी में ।
उत्तर प्रदेश में बड़े आला अफसर हैं (नाम नही ले रहा हूँ )...लेकिन वो कहते कहते कह गए कि जिस जिले में ये घटना हुई हैं, वहाँ जो उत्तर प्रदेश से जुड़े हैं वो जानते हैं कि कैसे हालत कैसे रहे हैं या वहाँ का इतिहास कैसा हैं ..खैर हिचकते हुए ही सही उन्होनें ये माना कि राजनीति का अपराधीकरण इस हद तक हुआ हैं कि अपराधी ही नेता हैं.। जिनका कुछ नही किया जा सकता हैं। तो ऐसें में आप उम्मीद किससे कर सकते हैं। समस्या केवल सिर्फ इस सरकार से नही, बल्कि, यह तो सत्ता का चरित्र ही बनता चला जा रहा हैं और देश की राजनीति इसी तरह चल रही है। बाहुबली, बलात्कारी, भ्रष्ट-दबंग नेता कमोबेश सभी सरकार में होते हैं
रवीश की रिपोर्ट में कानपुर से लेकर लखनऊ के थानेदारो में यादवों की संख्या पर प्रकाश डाला गया और बताया गया कि ये आकडें हैं... पर रवीश को कौन बताएं...कि माया सरकार में यादव होना ही गुनाह था  अगर थोडी तहकीकात करें तो पाएगें कि जितने यादव आज दिखते हैं, वो माया सरकार में या तो बंगाल की खाडी में थें या रवीश ही खोज सकते हैं.. और इस सरकार में भी किसी एक जाति के लोग हासिएँ पर हैं, और अगली सरकार में ये लोग जो अभी आकडे बने हुए हैं वो हासिएँ पर होगें।. खैर तो साहब हित के आगे आपका अपनी गुडों वाली सरकार हैं बस और कुछ नहीं...

शिशिर कुमार यादव
shishirdis@gmail.com

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