उन विचारों का मंच, जो वास्तविकता को आधार देता है. एक कोशिश, जो तह तक उतरने के जुनून से लबरेज है।
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
अनार एक बीमार हजार
शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
मधुमय अतीत .......
बुधवार, 28 अप्रैल 2010
सब अपनई हयेन
शनिवार, 20 मार्च 2010
उच्चारण
शिखा सिंह
अपनी भावनाओं ,विचारों और सूचना बताने के लिए हम भाषा का इस्तेमाल करते हैं। और भाषा गठन शब्दों से होता है। शब्द हमारी अभिव्यक्ति की इकाई होते हैं। हम शब्दों से ही वाक्य विन्यास होता है। वाक्य सूचना, विचार और भावनाओं को सम्प्रेषित करते हैं। यहां हम बोलकर और लिखकर सूचना सम्प्रेषण की बात कर रहे हैं। जब हम बोलकर अपने संदेश को प्रेषित करते हैं, तब शब्दों का वजन बढ जाता है। हमारा संदेश किसी को कितना प्रभावित करता है। प्रभावपूर्ण संदेश संप्रेषण हमारे उच्चारण पर निर्भर करता है। उच्चारण की एक गलती पूरी बात को बदल देती है।
हम सभी का उच्चारण या प्रननसियेशन हमारी पृष्ठभूमि निर्धारित करता है। हम किस समाज या किस प्रदेश से आ रहे हैं जैसे ऐसा माना जाता है उत्तर भारतीय लोगों की हिन्दी काफी अच्छी होती है। वहीं पश्चिम बंगाल के लोगों का हिन्दी में बंग्ला का पुट लिए होती है। यहां मेरी चर्चा का विषय हिन्दी भाषा नहीं है बल्कि उच्चारण है। यहां मैं उच्चारण को लेकर अपनी बात आप सबके सामने रखना चाहती हूं।
अक्सर ये देखने को मिलता है कि एक ही शब्द को लोग अलग- अलग तरह से उच्चारण बोलते हैं। अंग्रेजी भाषा में तो सबसे ज्यादा दिक्कत आती ेहै। विटामिन को वाइटामिन, एटिट्यूड , प्रोनाउनसिएशन ऐसे ढेरे शब्द है जिनको लेकर सही उच्चारण को लेकर क्या है। कोई नहीं जानता । उच्चापण की इसी समस्या के समाधान के लिए 2000 में इन्टरनेशनल फोनेटिक एसोसिएशन की स्थापना की गई। इसकी स्थापना का उद्देश्य यह है कि ईन्टरनेशनल भाषा का उच्चारण पूरे विश्व में एक जैसा हो। भारत, ब्रिटेन, इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया फ्रान्स हर जगह अंग्रेजी बोली जाती है। हर देश के लोग अपनी सुविधानुसार उच्चारण करते है। इसकी कई खामियाँ सामने आती है। शब्द का वास्तविक उच्चारण खो जाता है और सुविधा वाला उच्चारण हावी हो जाता है। पूरे विश्व में एक समान अंग्रेजी बोले जाने के लिए यह ऑर्गनाईजेशन फोनेटिक डिक्शनरी बना चुकी है। जिसमें शब्दों के अर्थ के साथ-साथ अलग अलग चिन्ह बनाए गए है ये चिन्ह उच्चारण के संकेत हैं।
^...अ cup /k^p/
Double /D^bal/
Monk /m^nk/
^...ae ऐ
Cat /kaet/
Stamp /staemp/
Dad /daed/
ये कुछ संकेत हैं जिनके माध्यम से एक समान उच्चारण किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। और अब पूरी दुनिया इस उच्चारण पर अमल कर रही है। कुछ शब्द एक समान ध्वनि के साथ बोले जाते हैं जिन्हें डिपथांग्स कहते हैं। इसका विवरण भी दिया गया है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है और कम्युनिकेशन के छात्रों से शुद्ध उच्चारण की आशा की जाती है।
हिन्दी भाषा में ऐसी कोई संस्था नहीं है जो सही उच्चारण की पैरवी करे। इसीलिए इसमें स,श,ष,र,ड,को लेकर गलतियां बड़े पैमाने पर मतभेद बना हुआ है। और स्वान्त़: सुखाय उच्चारण अधिकतर लोग करते हैं।
बुधवार, 10 मार्च 2010
जो तुमने देखे,जो हमने देखे बदलते तेवर ज़माने लाये जो हमने तुमने थे साथ देखे
न हम कभी भी हुए तुम्हारे
न तुम भी थे हुए हमारे
बंधी थे तुमसे जिसके सहारे
थी मेरी सरहद मेरे किनारे
यहीं कहीं पे वो एक तुम थे,
यहीं कहीं पे वो एक हम थे
बता रहीं है बची ये सरहद
सुना रहे है बचे किनारे
न अब हो तुम ना तुम्हारी बातें
न अब हूँ में ना पुरानी यादें
बची हैं सरहद बचे किनारे
दिखा रहे है निशाँ हमारे
शिखा सिंह
मंगलवार, 12 जनवरी 2010
मंहगाई और मेरा सपना
सच में अगर कोई आदमी सपनें में भी यह सोचता है तो उसें यह चीजे असम्भव लगती है। बढ़ती महगाई में ऐसा सोचना किसी सपनें से कम भी नही है। बढ़ती महगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है। आज अगर किसी के सामने सबसे बड़ी समस्या हैं तो वह है मंहगाई, और इस मंहगाई मे अपनें दो वक्त की रोटी का जुगाड करना ।पहले लोग प्याज को काटने में आसूँ बहाते थे लेकिन आज अगर प्याज खरीदनी हो तो आसूँ बह जाते है। पहले चीनी खाने कि मिठास को बढ़ाती थी आज वों हमारे बजट की कड़वाहट को बढ़ा रही है।
बात साफ है कि आज मंहगाई ही सबसे बड़ी समस्या है और आम आदमी को प्रभावित कर रही है। जिम्मेदार और जिसकी जवाब देही बनती है वे एक दूसरे पर आरोप लगाकर अपना बचाव करते हैं लेकिन जब बात जन हितैषी घोषित करने की होती है, तो गरीबो के घर रोटी खा आते हैं । लेकिन वे ही इस रोटी को लगातार महगां करते जा रहे है। जब जवाब मागों तो कहते हैं कि ‘’मैं गरीबों की गरीबी को करीब से देखने के लिए जाता हूँ”। अरे मान्यवर जो गरीबी को बढ़ा रही है वो जब दूर से ही नजर आ रही है तो पास जाकर देखने की क्या जरूरत, पहले इसके लिए कुछ करों।
खैर ये तो गरीबों की बात हुई । जो मध्यम वर्ग है जो गरीब से थोड़ा अमीर है उसें भी मंहगाई गरीब बनाने पर तुली है। बिजली, पानी, बच्चों की शिक्षा, आदि रोज की चीजे लगातार महगीं होती जा रही है । जिसने इन अमीरो की स्थिति को बिगाड़ दिया है।
सन 2009 में अर्थव्यवस्था में आए उतार चढ़ाव और कीमतों में एकाएक हुई तेजी के ग्राफ को देखते हुए 2010 मे भी बढ़ती कीमतों से राहत मिलनें की उम्मीद करना बेइमानी है। सरकार इस वर्ष भी राहत देने का कोई वादा करती नजर नहीं आ रही है। कारण तो सरकार के पास है ही, अरे जी हाँ आप सही समझें वही अनियमित मानसून, प्राकृतिक आपदा, बाढ, सूखा। सरकार कहती है कि ये ना होता तो कीमते ना बढ़ती लेकिन जो सच में कारण है वह हैं जमाखोरी। उस पर ध्यान न देना सरकार का हठ है। जमाखोरो ने अपनें भंड़ार पहले भर लियें और ऊचें दामों में बेचते है। सरकार इनसेँ निपटती ही नही न कोई केन्द्रीय भंडारण की कोई नीति और न कोई प्रयास। जनता के पास विकल्प के रूप में ये ही जमाखोर है, जो औने- पौने दामों में चीजों को बेच रहे है।
उद्योगपति रिटेल के नाम पर अनाज और सामान सस्ता बेच रहे है। इससे बाजार पर दवाब बढ़ जाता है जिससें मंहगाई बढ़ती है। अब दावा है कि रिटेल बाजार में सस्ता है। लेकिन आप खुद सोचिए कि आप वहाँ कितनी बार गयें है और सब्जी लेकर आये है। थोड़े समय के लिए ऐसा लग सकता है कि ये बड़े बाजार आपके लिए सस्ता है लेकिन जैसे-जैसे इनका अधिपत्य मजबूत होगा, चीजों का दाम बढ़ना तय है। सरकार का कुप्रंबधन निश्चित रूप से इसमें सहयोगी होगा।
हमारे देश की विडम्बना देखिए जहाँ धर्म, भाषा, जाति, क्षेत्र, आदि को लेकर जो किसी छोटे भू-भाग और कम जन संख्या को प्रभावित करती है उसके लिए जन आंदोलन और राजनीति होती है। लेकिन मंहगाई न किसी को आन्दोलित कर पा रही है और न ही राजनीति का हिस्सा बन पा रही है। हाल के लोक सभा और झारखण्ड राज्य के चुनाव से स्पष्ट है।
रोटी और मंहगाई के लिए कोई भी आंदोलन नहीं हो रहा है। य़ह तब तक नहीं रूकेगा जब तक जनता खुद सरकार को मजबूर ना करे तभी मुझ जैसा आदमी एक सपना देख सकेगां जिसमें प्याज 5रू किलो, चीनी 11रू किलो, नमक 3रू किलो हो।
शिशिर कुमार यादव
मंगलवार, 5 जनवरी 2010
अवतार
बैनर ;- 20, सेचुरी फाँक्स ।
निर्माता-निर्देशक ;- जैम्स कैमरून।
संगीत;- जेम्स हार्नर ।
कलाकार ;- सैम वर्थिगटन, सीर्गोनी विवर, स्टीफन लैग, जोसाल्डाना ।
‘अवतार’ वर्तमान से भविष्य की ओर देखने की एक सोच हैं। अवतार भविष्य में मानव की प्रकृति (NATURE) उसकी अपनी संसाधनो की भूख जिसें वह पाने के लिए किसी भी हद तक जाने का फिल्माकंन है। भविष्य की भूख के साथ संसाधनो को सहेजने के लिए मानवीय चेहरा भी दिखाया गया है। यह मानवीय चेहरा इस फिल्म में नायक के माध्यम से दिखाया गया है। वैसे कहानी 2154ई. की है।
फिल्म की कहानी एक पड़ोरा नामक ग्रह के इर्द-गिर्द घूमती है। पृथ्वीवासियों के गन्दें इरादो शिकार हो जात है। वे पेड़ोरा की कुछ जानकारी जुटाने, उस पर कालोनी बनाने के साथ साथ वहाँ की बहुमूल्य़ सम्पदा को ले जाना चाहते है। उनके रास्ते मे वहाँ के स्थानीय निवासी बाधा हैं। जिन्हे वो ब्लू मंकी कहते है। इन्हे वे नावी भी कहते है और इन्हे इंसानो से पिछड़ा मानते है।मानव बीच तकनीक से एक जैक को तैयार करते करते है। जिसे मनुष्य और नावी के DNA से मिलाकर बनाया गया है। जो अवतार का रूप है। इसे गहरी नीद मे रखकर निंयन्त्रित किया जा सकता है। जो उनके बीच जाकर जानकारियाँ इक्ठ्ठा करता है। उनके बीच ही उसे प्यार हो जाता है। वह उनकी दुनिया को उनकी नजरों से देखता है। तब उसे इंसानो के खतरनाक इरादों का पता चलता है और वह उनकी तरफ से लड़ता है और पेड़ोरा को बचाता है।
भारतीय परिदृश्य में अगर इस फिल्म को रखने की कोशिश करें तो हम अपने आदिवासियों और सभ्य समाज के इंसानो के बीच के संबधों की झलक देख सकते है।
फिल्म अदभुत है, अवतार फिल्म देखनें से ऐसा लगता ही नहीं की हम एक फिल्म देख रहे है, जैसे ऐसा लगता हैं कि हम एक सपनों की दुनिया में खो गए है। एक ऐसी दुनिया जहाँ सब कुछ अलग है, पेड, पौधों, प्राणी, मनुष्य सब कुछ अलग फिल्म में जो नेचरल खूबसूरती दिखायी गयी है वो अदभुत है। इसे बहेतरीन तरीके से फिल्माया गया है। एक्सन रोमाचक है। फिल्म युद्ध के बाद शांति की बात करती है। विजुवल, कहानी और एक्शन के साथ संतुलित है। तकनीकी फिल्म की जान है। फोटोग्राफी, स्पेशल विजुवल इफेक्टस, कास्टूयम, डिजायन, संपादन बेहतरीन है। लाइट व शेड दिल को खुश करने वाले है। इस फिल्म सी.जी.आई.(COMPUTER GENRATED EMAGE) का शानदार प्रयोग किया है। कलाकारो का अभिनय भी शानदार है। अगर आप प्रकृति से प्रेम करते हैं, तो ये फिल्म अवश्य देखें.। इस फिल्म के जरिये आप एक काल्पनिक दुनिया का सफर कर सकते है।