शनिवार, 2 मार्च 2013

काट्जू का मोदी प्रेम: संभावनाएं और प्रतिफल


काट्जू साहब गुस्से फिर गुस्सें में हैं, और इस बार वजह बने, विकास और प्रगति के वैश्विक नेता नरेन्द्र मोदी। जी हां आप सही समझें वहीं नेता जो आजकल राहुल गांधी से युवाओं के नेता का पद छीनने पर लगे हुए हैं, और फेसबुक और ट्विटर पर रहने वाली युवाओं का ऐसा ही सहयोग मिला ना तो जल्दी ही देश को 62 साल का युवा नेता मिल जाएगां (अब देश के प्रधानमंत्री 80 के तो युवा नेता 62 का ही होगा ना)।लेकिन फिर भी काटजू साहब नाराज हैं लिख बैठे एक लेख द हिन्दू सरीखे अखबार में गोधरा से जुडे सरोकारो पर, और भूल गए शानदार स्वागत और तालियों को जो दिल्ली यूनीवर्सिटी में मिली थी, सारी यूनीवर्सिटी नमो नमो कर रही थीं।

खैर मैं समझ सकता हूँ आप लोगों की समस्या। बूढे जो हो रहे हो। तो युवाओं और उनकी पंसद से चिढ़ना तो लाजमी हैं। अरे साहब, युवा जो शहरी हैं, जिसने आज तक गांव के फोटो देखे हैं या फिर फन के साथ मक्के दी रोटी और चने दा साग खाया है, उन लोगों को मालन्यूट्रिशन (कुपोषण), वुमेन मौरटेलिटी रेट ( मातृ मृत्यु दर), ह्यूमन इंडेक्स जैसे, उलूल जूलूल वाले आंकड़े दे कर पथ भ्रमित करने की साजिश करते हैं, शर्म तो आती नही। खैर लज्जा शर्म तो महिलाओं का आभूषण है तो आप क्यूं पहनो, इस लिए बात भी की, तो दलितो, पिछड़ो और आदिवासियों की। उनकी शिक्षा और रोजगार की समस्या पर लिखने लगें। अरे भाई यह समस्या भी कोई समस्या है देश के लिए, हजारो सालों से चली आ रही हैं और आप चाहते हैं कि इतनी जल्दी सुलझा दी जाएं।अरे, जिनके क्षेत्र का लोकतांत्रिक पर्व चुनाव सुर्खिया तक बटोर नहीं पाता  त्रिपुरा में चुनाव बीते 14 फरवरी और 23 फरवरी को मेघालय और नगालैंड में चुनाव थे, वहां की समस्याएं क्या खाक ध्यान आकर्षित करेगीं।

26 लोक सभा सीटों वाले राज्य के नेता देश के प्रधानमंत्री बनने के सच्चे अधिकारी हो जाते हैं, और आप हैं कि उन्हे 2002 में हुए दंगों की याद दिलाते हैं। शायद आप भूल गए हैं आजकल मोदी साहब आधा आस्तीन का कुर्ता ही पहन रहे हैं या फुल इस पर भी मीडिया सिर्फ फुल कवरेज दे रहा हैं और आप उस कुर्ते की ओर इशारा कर रहें है जिस पर मासूमों के खून के छीटे पड़े हुए हैं। मोदी का 3डी कैंपेन देखिए, ऊ कुर्ता के चक्कर में काहे को पड़े हैं मालिक। जल्द ही आप ने अपने सुर नहीं बदले ना तो देश भक्ति के रस से सराबोर युवा, जिनके मोदी ही सारथी है, आप के खिलाफ इतना बड़ा आदोलन खड़ा कर देगे, जिसका पता तो उन्हें भी नहीं चलेगा कि वो समर्थन या विरोध किस चीज का कर रहे हैं। आप के जेहन में मैं अन्ना हूँ वाला आंदोलन (जो बाद में केजरीवाल होते हुए खत्म हो गया) नही हैं क्या ? भूलिए मत उनके इस सारथी पर जरा सी आंच आई तो वो क्या नहीं कर गुजरेगें। अन्ना का विरोध करना भष्ट्राचारी बना रहा था, तो मोदी का विरोध आप को राष्ट्रद्रोही तो बना ही सकता हैं। इस द्रोह का बदला लेने के लिए हमारे देश में वध करने की परम्परा रही हैं.. हां सही समझे गांधी जी इसी वध में दुनिया छोड़ गए थे।
आप एक और चीज भूल जाते हैं इस देश में दंगे, बहुसंख्यकों के लिए गर्व के विषय रहे हैं, और बहुसंख्यक इन्हे सिर्फ अल्पसंख्यकों की उद्दण्डता की प्रतिक्रिया में हुई क्रिया के रूप में सहीं ठहराता रहा हैं। 1984 के दिल्ली दंगें, गोधरा के दंगे, देश के हर कोने में दलितों और आदिवासियों के नरसंहार सिर्फ और सिर्फ अल्पसंख्यको और कमजोरों को चेतावनी देते हैं कि हमारे ढंग से रहो वरना................ ( खाली स्थान को भरने के लिए मेरे पास जगह कम है)। और काट्जू साहब आप जिस संस्थान के सर्वेसर्वाओ में से एक रहे है वो भी आज कल न्याय देते वक्त अजीबोगरीब तर्क दे कर न्याय देते हैं। अयोध्या मसले पर बहुसंख्यकों की भावना का ख्याल रखते हुए दिया गया न्याय, साथ ही साथ हाल में हुई अफजल की फांसी को देश की भावना को संतुष्ट करने के पीछे की मंशा भी, न्याय के प्रतीक (न्याय का मंदिर इस लिए नहीं क्यू कि मंदिर ही क्यू ? मस्जिद, गुरूद्वारा और चर्च क्यू नहीं वाली विचार धारा से प्रेरित) पर आस्था को दरकाने वाली ही रही हैं। कमजोरो, पिछड़ो और वंचितों की आवाज भी अगर इसी तरह इन संस्थानों में भी बहुसंख्यकों के दबाव में दम तोड़ती रहेगी, तो मोदी को आप के इन जवाबो को देने की जरूरत भी नहीं है क्योंकि ये सवाल और सरोकार बहुसंख्यको के नहीं हैं, ये उनके सवाल हैं जिनको आज ही नहीं, वरन ना जाने कितनी सदियों से कुछ खांचों में डालकर कर दीवारों में चुनवा दिया जाता रहा हैं। तो सजग रहिए काट्जू साहब हमें आप की चिंता हैं इलाहाबादी होने के नातें ही सही।