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शनिवार, 11 मई 2013

प्राण का फाल्के पुरस्कार गुमनाम कलाकारो के नाम ...

प्राण जिन्होनें अपने अभिनय से ना जाने कितनी फिल्मों में प्राण डाले

महानता की अपनी एक कीमत होती है कोई भी इस कीमत को चुकाएं बिना महान नहीं हो सकता है। भरोसेमंद, दीवार, रीढ होना और न जाने क्या क्या, इसी महानता के पर्यायवाची है। हर एक शब्द की अपनी राजनीति है और उसका एक उद्देश्य होता है। पर इन सभी शब्दों में भरोसेमंद होने का अपना ही एक अलग मजा और एक अलग दृष्टिकोण है, हम उन्हें भरोसेमंद कह देते है जिन्हें हम वो जगह नहीं दे पाते जिनके वों हकदार होते हैं, लेकिन करें क्या ? हम उन्हें छोड़ भी नहीं सकते, क्योंकि उन जैसा दूसरा कोई है भी नहीं। जीवन के रिश्तों में यह हकीकत है। आप इसे तभी महसूस कर सकते है जब आप किसी इंसान के लिए बेहतर और उसें सुरक्षित रखनें की कोशिश करते है, और वो भी उससे बिना कुछ मागें। हो सकता है मेरी कुछ पक्तियां बहुतो के करीब से गुजर गयी हों, पर मेरा यह उद्देश्य भी है... जिस बात का उल्लेख मैं यहां करने जा रहा हूँ उसके लिए यह पक्तियां अक्षरश: सहीं है, मैं हिंदी सिनेमा के सबसे चर्चित विलेन रहे प्राण की बात कह रहा हूँ। जिन्हें दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया. प्राण सरीखें अभिनेता हिंदी फिल्म जगत के वो किरदार रहें जिनकी आलोचना में ही तारीफ छुपी होती है और तारीफ में ना जाने क्या क्या। 
आज प्राण को दादा साहेब फाल्के अवार्ड मिलने पर लगा कि सच में अवार्ड की इज्जत बढ गई की प्राण जैसे किरदारों के लिए ये अवार्ड बना। बचपन से लेकर 18- 19 की उम्र तक प्राण के किरदारों से घृणा होती थी। फिल्मों की समझ हो ना हो हम फिल्म के हीरो के साथ हो लेते थें। फिल्मी पर्दा हो या  अखबार का पेज पंसद सिर्फ हीरो ही आता थां। फिल्म में क्या कहीं अन्य जगहों पर भी प्राण जैसें किरदारों को देखते ही मन अपने आप नींबू जैसा खट्टा हो जाता थां। फिल्मों की बढती समझ ने समझ में आया कि मेरी वो घृणा दरअसल प्राण के किये गए काम की सराहना होती थी यहीं तो प्राण चाहते थें, कि फिल्मों की समझ हो या ना हो पर वो अपने किरदार को हर समझने और ना समझने वाले को समझा देते थें।
सच में प्राण एक अभिनेता रहें और हैं, जिन्होने अपने अभिनय से समाज के वो किरदार जिए, जिन्हें जीना सच में अपने आप में एक कठिन चुनौती था। हिन्दी फिल्म जगत की नायक प्रधान समाज में खुद को खलनायक बना कर अपनी पहचान और दर्शकों के बीच स्वीकार्यता बना पाना किसी भी अभिनेता के लिए हमेशा  चुनौती रहा हैं, और इसी चुनौती में दर्शकों द्वारा खुद के अभिनय के लिए सराहना पाना उन सबसे और अधिक दुष्कर काम था लेकिन प्राण उन चुंनीदा लोगों में से एक हैं जिन्होनें ना केवल इन किरदारो को पर्दे पर जिया बल्कि उस किरदार के रूप में पूरा न्याय किया, जिनकी वजह से हमें पर्दे से अपने लिए नायक चुननें में सुविधा रहीं।
 1969 में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के की सौंवीं जयंती के अवसर पर शुरू किया गया यह भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा पुरस्कार है, जो आजीवन योगदान के लिए केंद्र सरकार की ओर से दिया जाता है। भारत सरकार द्वारा यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के संवर्धन और विकास में उल्लेखनीय योगदान करने के लिए दिया जाता है। 1969 से शुरू हुए इस पुरस्कार को अब तक प्राण समेत 44 लोगों को दिया गया हैं। जिनमें अभिनेत्रीयों, अभिनेता, पार्श्व गायक, पार्श्व गायिका, निर्देशक, छायाकार, फ़िल्म निर्माता और फ़िल्म पटकथा लेखकों को मिल चुका हैं लेकिन प्राण अभिनेता वर्ग का प्रतिनिधित्व करेगें, जिनके अभिनय की चर्चा सिनेमा हॉल के बाहर बहुत कम ही होती हैं। फिल्म की सफलता और असफलता की श्रेय से वंचित ये वो किरदार होते हैं जो नीव के पत्थर तो बन सकते हैं पर भवन के कंगूरें पर सज जाएं ये लगभग नामूमकिन हैं। ऐसें में उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हुए एक कलाकार होने के नाते प्राण का ये मुकाम दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने वाले अन्य कलाकारों से अलग हैं और विशिष्ट भी। प्राण को दादा साहब फाल्के पुरस्कार सिनेमा जगत के उन हर कलाकार को एक सम्मान सरीखा  और प्रेरणा सरीखा हैं, जिन्हें सिनेमा की रंगीन दुनिया में अभिनेता रूपी सितारों के आगे चमकने ही नहीं दिया।
आज इस वक्त में जब प्राण के समकालीन सभी अभिनेता धीरें धीरें क्षितिज के तारे बनते जा रहें हैं ऐसें में प्राण अभिनय की एक जीता जागता रास्ता हैं जिसका कोई भी अनुसरण कर के कोई भी अपनी मंजिल आसानी से पा सकते हैं। खास कर वो लोग जो रंगीन सपनो के साथ इस शहर में आते हैं और इसकी चकाचौध में कही पूरी तरह खो जाते हैं। ऐसें में प्राण सरीखे कलाकार उन सभी के लिए प्रेरणा स्त्रौत हैं, जो अपने व्यक्तित्व से ईमानदारी और निष्ठा अपने काम करने को तवोज्जों देते हैं। हम सब को जंजीर फिल्म का यारी हैं ईमान मेरी, यार मेरी जिंदगींशब्द तो याद होगें आज प्राण के लिए इऩ्हीं शब्दों को के साथ कहा जा सकता है कि अभिनय हैं ईमान तेरा अभिनय तेरी जिंदगीं
शिशिर कुमार यादव